Sunday 19 March 2023

मंगोलिया की मंगलवार व्रत कथा

अमरावती नगर में एक बुढ़िया रहती थी |  मंगलवार को सूर्योदय के समय उठकर स्नानादि से निवृत्त हो वह मंगलवार का व्रत रखकर मंगल देवता की पूजा किया करती थी |  लेकिन व्रत करने का तरीका था|  मंगलवार को वह घर आंगन को गाय के गोबर से नहीं  लीपति थी |   बुढ़िया का 1 पुत्र था मंगोलिया | मंगलवार को उसका जन्म होने के कारण  उसने अपने पुत्र का नाम मंगोलिया रखा था |



 उस बुढ़िया को मंगलवार का व्रत करते हुए कई वर्ष हो गए थे | एक दिन मंगल देवता ने उस बुढ़िया  की भक्ति की परीक्षा लेने का विचार किया |  अतः साधु का वेश धारण कर वह बुढ़िया के घर पहुंचे|  दरवाजे पर खड़े होकर साधु ने पुकारा,  नारायण नारायण |  बाहर आई तो साधु ने कहा,  हम बहुत दूर से यात्रा करते हुए इत नगर में आए हैं |  हमारे लिए अपने घर के आंगन में थोड़ी सी जगह  लिप दो तो हम भोजन बना कर खा लेंगे |


 बाबू की बात सुनकर बुढ़िया ने कहा,  महाराज!  मैंने मंगलवार का व्रत किया है|

 मंगलवार को मैं घर आंगन नहीं लीपति हूं | मैं आपको भोजन सामग्री दे देती हूं| आप स्वयं थोड़ी सी जगह लीपकर भोजन बना लीजिए | साधु ने पुनः बुढ़िया से आंगन लीपने को आग्रह किया तू वह बोली,  महाराज!  मैं अपने व्रत के कारण आंगन को नहीं लीप सकती | आप इसके अलावा जो भी आदेश करेंगे मैं उसे अवश्य पूरा करूंगी|  तब साधु ने अपने आदेश को पूरा करने के लिए बुढ़िया से तीन वचन भरवा लिए|  उसके बाद साधु ने बुढ़िया से कहा,  अपने पुत्र से कहो कि वह आंगन में मुंह के बल लेट जाए|  हम उसकी पीठ पर भोजन बनाकर अपनी भूख शांत करेंगे| 


 साधु की बात सुनकर गुड़िया भय से कांप उठी,  लेकिन अपने वचन से पीछे ना हटी|  साधु ने मंगोलिया को जमीन पर लिटा कर,  उस पर चूल्हा रखकर अग्नि प्रज्वलित की |   जलते हुए चूल्हे को देख बुढ़िया वहां रुकना सकी और मंगल देवता का स्मरण करते हुए,  पुत्र की सुरक्षा की प्रार्थना करती हुई आंगन से बाहर चली गई|

 कुछ देर में भोजन बन गया तो साधु भोजन लेकर द्वार पर बैठी बुढ़िया के पास पहुंचा और बोला,  भोजन बन गया है|  अब तुम अपने लड़के को बुलाओ|  वह भी हमारे साथ भोजन कर ले|  बुढ़िया तो इस आशंका में बुरी तरह भयभीत थी कि भोजन पकाते समय अग्नि की जलन से मंगोलिया के प्राण अवश्य ही निकल गए होंगे|  बुढ़िया ने साधु से कहा,  महाराज!  इतनी देर अग्नि के ताप से मेरा बेटा भला कहां जीवित रहा होगा|  आप भोजन कर लें तो मैं अपने मृत पुत्र के अंतिम संस्कार का प्रबंध करूं | साधु ने कहा अरे तुम यह कैसी  अशुभ  बातें कर रही हो|  एक बार अंदर जाकर अपने बेटे को यहां बुला कर तो लाओ| 


 बुढ़िया ने कांपते ही देते मंगोलिया कहकर आवाज लगाई |  मंगोलिया हंसता हुआ बाहर आ गया|

 अपने बेटे को देखकर बुढ़िया बहुत खुश हुई|  उसकी पीठ पर  जलने का कोई निशान तक ना था | बुढ़िया उस चमत्कार से हैरान रह गई | साधु के चरण स्पर्श करते हुए कहा महाराज! मेरे बेटे को लंबी आयु का आशीर्वाद दीजिए और कृपया यह बतलाइए कि ऐसा चमत्कार कैसे हुआ?  तभी मुस्कुराते हुए साधु ने अलौकिक रूप से अपने वेस्को  परिवर्तित किया  और मंगल देवता के रूप में प्रकट होकर बोले,  मैं तुम्हारे मंगलवार के व्रत और पूजा पाठ से अति प्रसन्न हूं|  तुम मेरी परीक्षा में उत्तीर्ण  रही हो| मैं तुम्हारे पुत्र की लंबी आयु के साथ-साथ उसे धन-संपत्ति से संपन्न रहने का वरदान भी देता हूं|  यह कहकर मंगल देवता अंतर्धान हो गए|  उसके बाद गुड़िया के जीवन में सभी तरह के सुखों का समावेश हुआ|  उसके घर में धन संपत्ति के अंबार लग गए|  मंगलवार का विधिवत व्रत करते हुए गुड़िया अपने पुत्र के साथ आनंद पूर्वक जीवन यापन करने लगी|

 इति मंगलवार व्रत कथा|


Thursday 9 March 2023

सोमवार व्रत कथा

किसी  नगर में एक धनी व्यापारी रहता था| दूर-दूर तक उसका व्यापार फैला हुआ था |नगर के सभी लोग उस व्यापारी का बहुत सम्मान करते थे|  इतना संपन्न होने के बाद भी  वह व्यापारी बहुत दुखी रहता था,  क्योंकि उसका कोई पुत्र नहीं था | किस कारण अपने मृत्यु के पश्चात व्यापार के उत्तराधिकारी ना होने की चिंता उसे हमेशा सताती रहती थी | पुत्र प्राप्ति की इच्छा से व्यापारी प्रत्येक सोमवार भगवान शिव की  व्रत एवं पूजा किया करता था  और शाम के समय शिव मंदिर में जाकर शिवजी के सामने घी का दीपक चलाया करता था |  उसकी भक्ति देखकर मां पार्वती प्रसन्न हो गई और भगवान शिव से उस व्यापारी की मनोकामना पूर्ण करने का निवेदन किया |

 मां पार्वती के निवेदन पर भगवान शिव जी बोले-  “इस संसार में सबको उसके कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति होती है” | 

शिव जी द्वारा समझाने के बावजूद मां पार्वती नहीं मानी और उस व्यापारी की मनोकामना पूर्ति हेतु वे शिवजी से बार-बार

अनुरोध करती रही अंततः माता के आग्रह को देखकर भगवान भोलेनाथ को उस व्यापारी को पुत्र प्राप्ति का वरदान देना

पड़ा |




 वरदान देने के पश्चात् भोलेनाथ मां पार्वती से बोले आपके आग्रह पर मैंने पुत्र प्राप्ति का वरदान तो दे दिया परंतु 

इसके पुत्र की आयु की अवधि 16 वर्ष से अधिक ना होगी |  उसी रात भगवान शिव उस व्यापारी के स्वप्न में आए

और उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और उसके पुत्र के 16 वर्ष तक जीवित रहने की भी बात बताई | भगवान के वरदान

से व्यापारी को खुशी तो हुई,  लेकिन पुत्र की अल्पायु की चिंता ने उसकी खुशी को नष्ट कर दिया |

व्यापारी पहले  की तरह सोमवार के दिन भगवान शिव का विधिवत व्रत करता रहा | 

कुछ महीनों के बाद उसके घर एक अति सुंदर बालक  ने जन्म लिया ,  और घर में खुशियां ही खुशियां भर गई |

बहुत धूमधाम से पुत्र जन्म का समारोह मनाया गया परंतु व्यापारी को पुत्र जन्म की अधिक खुशी नहीं हुई क्योंकि उसे पुत्र

की अल्पायु की जानकारी थी |  जब पुत्र 12 वर्ष का हुआ तो व्यापारी ने उसे  उसके मामा के साथ पढ़ने के लिए वाराणसी

भेज दिया |  लड़का अपने मामा के साथ शिक्षा प्राप्ति हेतु  वाराणसी के लिए निकले |  रास्ते में जहां भी मामा भांजे विश्राम

हेतु रुकते  वही यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते |




 लंबी यात्रा के बाद मामा भांजे एक नगर में पहुंचे |  उस दिन नगर के राजा की कन्या का विवाह था,

  जिस कारण पूरे नगर को सजाया गया था |  निश्चित समय पर बारात आ गई लेकिन वर का पिता अपने बेटे के एक आंख से

का नहीं होने के कारण बहुत चिंतित था |  उसे भय था कि इस बात का पता चलने पर कहीं राजा विवाद से इनकार न कर दे |

  इससे उसकी बदनामी भी होती |  जब वर के पिता ने व्यापारी के पुत्र को देखा तो उसके मस्तिष्क में एक विचार आया | 

उसने सोचा क्यों ना इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं|  विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर

दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा| 


 वर के पिता ने लड़के के मामा से इस संबंध में बात की |  मामा ने धन मिलने के लालच में वर के पिता की बात स्वीकार कर

ली  और लड़के को दूल्हे का वस्त्र पहना कर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया |  राजा ने बहुत सारा धन देकर राजकुमारी

को विदा किया |  शादी के बाद लड़का जब राजकुमारी  के साथ लौट रहा था तो वह सच नहीं छिपा सका और उसने

राजकुमारी के ओढ़नी पर लिख दिया- “राजकुमारी,  तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ था,  परंतु मैं तो वाराणसी पढ़ने के लिए

जा रहा हूं और अब तुम्हें जिस नवयुवक की पत्नी बनना पड़ेगा,  वह एक आंख से काना है |”


 जब राजकुमारी ने अपनी ओढ़नी पर लिखा हुआ पड़ा तो उसने का नहीं लड़की के साथ जाने से इनकार कर दिया | 

राजा को जब यह बात पता चली,  तो उसने राजकुमारी को महल में ही रख लिया |  उधर लड़का अपने मामा के साथ

वाराणसी पहुंच गया और गुरुकुल में  पढ़ने लगा | जब उसकी आयु 16 वर्ष की हुई तो उसने यज्ञ किया |  यज्ञ की समाप्ति पर

ब्राह्मणों को भोजन कराया और खूब अन्य वस्त्र दान किए |  रात को वह अपने शयनकक्ष में सो गया |  शिव के वरदान के

अनुसार चयन अवस्था में ही उसके प्राण पखेरू उड़ गए |  सूर्योदय पर मामा मृत भांजी को देखकर रोने पीटने लगा | 

आसपास के लोग भी एकत्र होकर दुख प्रकट करने लगे | लड़की के मामा के रोने,  विलाप करने के स्वर समीप से गुजरते

हुए भगवान शिव और माता पार्वती जी ने भी सुने | माता पार्वती ने भगवान से कहा - “  प्राणनाथ,  मुझे इसके रोने के स्वर

सहन नहीं हो रहे |  आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें |”

 भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ अदृश्य रूप में समीप जाकर देखा तो भोलेनाथ,  माता पार्वती से बोले - 

“  यह तो उसी व्यापारी का पुत्र है,  जिसे मैंने 16 वर्ष की आयु का वरदान दिया था |  इसकी आयु पूरी हो गई है| ”


 मां पार्वती ने फिर भगवान शिव से निवेदन कर उस बालक को जीवन देने का आग्रह किया |  माता पार्वती के आग्रह पर

भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया और कुछ ही पल में वह जीवित होकर उठ बैठा |  




शिक्षा प्राप्ति के बाद लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया |  दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे जहां उसका

विवाह हुआ था |  उस नगर में भी यज्ञ का आयोजन किया |  समीप से गुजरते हुए नगर के राजा ने यज्ञ का आयोजन देखा

और उसने तुरंत ही लड़के और उसके मामा को पहचान लिया |   यज्ञ के समाप्त होने पर  राजा मामा और लड़के को महल

में ले गया और कुछ दिन उन्हें महल में  रखकर बहुत साधन वस्त्र आदि देकर राजकुमारी के साथ विदा  कर दिया | 


 इधर भूखे प्यासे रहकर व्यापारी और उसकी पत्नी बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे |  उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उन्हें

अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो दोनों अपने प्राण त्याग देंगे परंतु जैसे ही उसने बेटे के जीवित वापस लौटने का

समाचार सुना दो वह बहुत प्रसन्न   हुआ |  वह अपनी पत्नी और मित्रों के साथ नगर के द्वार पर पहुंचा |  अपने बेटे के विवाह

का समाचार सुनकर ,  पुत्रवधू राजकुमारी को देखकर उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा |  उसी रात भगवान शिव ने

व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा - “  हे  श्रेष्ठी,  मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रत कथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को

लंबी आयु प्रदान की है |”  पुत्र की लंबी आयु जानकर व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ | 


 शिव भक्ति  तथा सोमवार का व्रत करने से व्यापारी की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हुई,  इसी प्रकार के भक्त सोमवार का

विधिवत व्रत करते हैं और व्रत कथा सुनते हैं  उनकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं | 


इति सोमवार व्रत कथा संपूर्ण 


Wednesday 1 March 2023

Story behind Holi

What is Holi?

Holi, also known as the Festival of Colors, is one of the most popular festivals in India and is celebrated with great enthusiasm and fervor. The festival is celebrated on the full moon day in the Hindu month of Phalguna, which usually falls in late February or early March.



Story behind Holi

The origin of Holi can be traced back to ancient Hindu mythology. According to one of the legends, the festival celebrates the victory of good over evil. The legend tells the story of a demon king named Hiranyakashipu, who had been granted a boon that made him invincible. The demon king, however, was so arrogant that he began to consider himself to be God and demanded that people worship him instead of the deities.

Hiranyakashipu's son, Prahlada, was a devout follower of Lord Vishnu, one of the Hindu gods. This enraged the demon king, who tried to kill his own son, but Lord Vishnu intervened and saved Prahlada. In the end, the demon king was killed by Lord Vishnu, and the victory of good over evil is celebrated on Holi.

How is Holi celebrated?

The festival of Holi is celebrated with a lot of excitement and enthusiasm. People start preparing for the festival weeks in advance, by making sweets and colorful powder, which is used to smear on each other's faces during the celebrations. On the day of Holi, people gather in groups and throw colored powder and water at each other, dance to music, and enjoy traditional sweets.

One of the most popular traditions of Holi is the bonfire that is lit on the eve of the festival, which symbolizes the burning of evil. People gather around the fire, sing and dance, and offer prayers to the gods.

Another important aspect of Holi is the sharing of sweets and delicacies with family and friends. Gujiya, a sweet dumpling filled with khoya and dry fruits, is a popular delicacy that is prepared during Holi.

In recent years, Holi has gained popularity not just in India, but also in other parts of the world, including the United States and the United Kingdom. Many communities organize Holi events, where people from different cultures come together to celebrate the festival.

However, as with any festival, it's important to celebrate Holi in a responsible and safe manner. The colors used during the festival can sometimes contain harmful chemicals, which can cause skin irritation and other health problems. It's also important to be mindful of other people's boundaries and not force anyone to participate in the celebrations if they don't want to.

In conclusion, Holi is a festival that celebrates the triumph of good over evil and is an opportunity for people to come together and enjoy each other's company. The festival is a colorful and vibrant celebration that showcases the diversity and richness of Indian culture. It's a time to forget all differences and embrace each other with love and joy.


Tuesday 28 February 2023

बृहस्पतिवार व्रत कथा

प्राचीन काल की बात है.  राज्य में एक बड़ा प्रतापी और दानी राजा रहता था. वह प्रत्येक गुरुवार को व्रत किया करता था एवं भूखे और गरीबों को दान देकर पुण्य प्राप्त करता था |

परंतु यह बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी. वह न तो व्रत करती थी, न ही किसी को एक भी पैसा दान में देती थी और राजा को भी ऐसा करने से मना करती थी. 

एक समय की बात है, राजा शिकार खेलने के लिए वन चले गए . घर पर रानी और दासी थी. उसी समय गुरु बृहस्पतिदेव साधु का रूप धारण कर राजा के दरवाजे पर भिक्षा मांगने आए.

 

साधु ने जब रानी से भिक्षा मांगी तो वह कहने लगी, हे साधु महाराज, मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूं. आप कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे कि सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रह सकूं. 

बृहस्पतिदेव ने कहा, हे देवी, तुम बड़ी विचित्र हो, संतान और धन से कोई दुखी होता है. अगर अधिक धन है तो इसे शुभ कार्यों में लगाओ, कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ, 

विद्यालय और बाग-बगीचे का निर्माण कराओ, जिससे तुम्हारे दोनों लोक सुधरें. परंतु साधु की इन बातों से रानी को खुशी नहीं हुई. उसने कहा कि मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं है, जिसे मैं दान दूं और जिसे संभालने में मेरा सारा समय नष्ट हो जाए.

बृहस्पतिदेव ने कहा, हे देवी, तुम बड़ी विचित्र हो, संतान और धन से कोई दुखी होता है. अगर अधिक धन है तो इसे शुभ कार्यों में लगाओ, कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ, विद्यालय और बाग-बगीचे का निर्माण कराओ, जिससे तुम्हारे दोनों लोक सुधरें. 

परंतु साधु की इन बातों से रानी को खुशी नहीं हुई. उसने कहा कि मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं है, जिसे मैं दान दूं और जिसे संभालने में मेरा सारा समय नष्ट हो जाए.

तब साधु ने कहा- यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो मैं जैसा तुम्हें बताता हूं तुम वैसा ही करना. गुरुवार के दिन तुम घर को गोबर से लीपना, अपने केशों को पीली मिटटी से धोना, केशों को धोते समय स्नान करना, 

राजा से हजामत बनाने को कहना, भोजन में मांस मदिरा खाना, कपड़ा धोबी के यहां धुलने डालना. इस प्रकार सात बृहस्पतिवार करने से तुम्हारा समस्त धन नष्ट हो जाएगा. इतना कहकर साधु रुपी बृहस्पतिदेव अंतर्ध्यान हो गए.

साधु के अनुसार कही बातों को पूरा करते हुए रानी को केवल तीन बृहस्पतिवार ही बीते थे कि उसकी समस्त धन-संपत्ति नष्ट हो गई. भोजन के लिए राजा का परिवार तरसने लगा. 

तब एक दिन राजा ने रानी से बोला कि हे रानी, तुम यहीं रहो, मैं दूसरे देश को जाता हूं, क्योंकि यहां पर सभी लोग मुझे जानते हैं. इसलिए मैं कोई छोटा कार्य नहीं कर सकता. ऐसा कहकर राजा परदेश चला गया.

मंगोलिया की मंगलवार व्रत कथा

अमरावती नगर में एक बुढ़िया रहती थी |  मंगलवार को सूर्योदय के समय उठकर स्नानादि से निवृत्त हो वह मंगलवार का व्रत रखकर मंगल देवता की पूजा किया...